वन जीवन संरक्षण में भारत ने निभाई अहम भूमिका — 11 गैडे लौट अपने प्राकृतिक आवास में
भारत ने वन्यजीवन संरक्षण की मिसाल कायम की है, जब उत्तर बंगाल के जलदापाड़ा नेशनल पार्क में आई बाढ़ के बाद बह गए 11 गैंडों को तीन हफ्तों तक खोजकर उनके घर सुरक्षित पहुंचाया गया��। इस मेहनत में वन विभाग के अधिकारी, लोकल लोग, और स्वयंसेवी बड़ी लगन से जुटे, और नरेंद्र मोदी सरकार ने इस अभियान को पूरा सपोर्ट दिया��। हाथियों ने खास भूमिका निभाई, जिनकी मदद से गैंडों को मुश्किल जगहों से बाहर निकाला गया��। इसमें कई लोग अपनी जान जोखिम में डालकर जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए दिन-रात लगे रहे। यह मिशन दिखाता है कि भारत में इंसानियत और समर्पण के साथ वन्यजीवों की सुरक्षा को कितना महत्व मिलता है��।

भाई, सोचो, जब बरसात की वह रात थी, सबको शायद नींद भी नहीं आ रही थी — कड़कती बिजली, गरजता आसमान और उत्तर बंगाल के जंगलों में बाढ़ का जबरदस्त कहर! इस तूफान में जलदापाड़ा नेशनल पार्क के 11 गैंडे तेज धाराओं में बह गए। लेकिन यहां कहानी खत्म नहीं होती, असली रोमांच, इंसानी जज्बा और जान पर खेल जाने का किस्सा तो अब शुरू होता है।बाढ़ से हाहाकार, लेकिन हिम्मत नहीं हारी4 अक्टूबर की रात जब Torsha नदी उफान पर आई, तो जलदापाड़ा नेशनल पार्क समेत आसपास के इलाके पानी में डूब गए। भारी बारिश से पार्क के बड़े हिस्से के साथ आसपास के गांवों में भी पानी घुस आया। इस बीच, गैंडे भी बहकर कभी जंगल, कभी इंसानों की बस्तियों में पहुंचने लगे। ऐसे में पूरे इलाके में अफरातफरी का माहौल बन गया।तीन हफ्ते, दिन रात एक — रेस्क्यू रियल हीरोसयह ऑपरेशन भारत के वन्य जीवन इतिहास में सबसे बड़ा रेस्क्यू मिशन रहा। 13 दिन चले इस अभियान में सिर्फ वन विभाग नहीं, बल्कि स्थानीय पुलिस, फायर ब्रिगेड, सैकड़ों वन अधिकारी, डॉक्टर, और आम लोग भी रात दिन लगे रहे। कई तो लगातार 13 दिन बिना ढंग से सोए डटे रहे।
इंसानों के साथ-साथ इस ऑपरेशन में 11 हाथियों की भी अहम भूमिका रही — यह विशालकाय दोस्त उन गैंडों को रेस्क्यू करने के लिए सबसे मुश्किल जगहों तक पहुंचे, पानी से जूझते रहें, और कई जगह खुद के भी जान जोखिम में डाली।नरेंद्र मोदी सरकार का पूरा साथ और पब्लिक की एकजुटताजैसे ही जंगल बाढ़ में घिरा, मौजूदा केंद्र और राज्य सरकार हरकत में आई। खुद नरेंद्र मोदी जी ने पहले ही 'Vantara' जैसी वृहत परियोजनाओं से वन्यजीव संरक्षण को नई उड़ान दी है, जिसका असर स्थानीय प्रशासन की फुर्ती में भी दिखा।
लोकल पंचायत, पुलिस, स्वयंसेवी संस्थाएं, और आम नागरिक भी जंगल से गांव तक इस मुहिम में वन विभाग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। सैकड़ों बहादुरों ने पानी, कीचड़, और खतरे से भरी जगहों पर कई रातें जागकर, अपनी जान हथेली पर रखकर इन गैंडों की ज़िंदगियां बचाईं।मिशन के रियल हाईलाइट्सकुल 11 गैंडे बहाव में पड़ गए, लेकिन सभी को ढूंढकर ट्रैंक्विलाइज़ किया गया और शिफ्टिंग की गई।हाथियों की कड़ी ट्रेनिंग और सूझ-बूझ ने रेस्क्यू को कामयाब बनाया।ट्रकों, नावों, और दमकल वाहनों का इस्तेमाल गैंडों को मुश्किल जगहों से निकालने में किया गया।गैंडों की हेल्थ की हर पड़ाव पर जांच की गई; सभी को सुरक्षित, स्वस्थ देखकर ही वापसी कराई गई।ऑपरेशन को मैन्युअल रेस्क्यू रखा गया, क्योंकि हर जान अनमोल थी — हर स्टेप पर डॉक्टर, अधिकारी, हाथी और स्थानीय लोग साथ रहे।गांव और शहर के लोग गैंडों को देखकर उत्साहित भी हुए, लेकिन कहीं भी सोशल ऑर्डर बिगड़ने नहीं दिया गया।इंडिया की वाइल्डलाइफ कंजरवेशन — दुनियाभर में मिसालदेश के लिए यह न्यूज सिर्फ बाढ़ में गैडे बचाने का मामला नहीं है, बल्कि यह भारत की चेतना, संस्कार और सिस्टम की ताकत की मिसाल है।
नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में जिस तरह वन्यजीव संरक्षण की मुहिमें चल रही हैं — Vantara जैसी योजनाएं, नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ की मीटिंग्स — उसकी वजह से लोकल एडमिनिस्ट्रेशन चौंकन्ना है, रिस्क उठाने में पीछे नहीं रहता।
इस पूरी घटना के दौरान गेंडों के साथ-साथ हाथियों, जंगली भैंसे (बाइसन), तेंदुए, हिरण, और छोटी-बड़ी तमाम प्रजातियों की भी फिक्र रखी गई।
कई लोकल लोग जिन्होंने खुद बाढ़ की मार झेली, दो जून की रोटी मुश्किल से जुटाई, वही लोग जंगल और वन्यजीव बचाव में सबसे आगे रहे — यही है इंडिया की रियल ताकत!हर जान मायने रखती हैहर गैंडा, हर जानवर एक परिवार की तरह देखा गया।
जिन गैंडों को सीधा ट्रैक करना मुश्किल था, उन्हें लोकेट करने के लिए ड्रोन, दूरबीनें, और लोकल वॉलंटियर्स की जानकारी-भागीदारी से ढूंढा, रातों तक जगा गया।
इन गैंडों को वापस शिफ्ट करते समय इनकी फिजिकल स्टेट — दिल की धड़कन, सांस, और फुसफुस या पॉजीटिव रेस्पॉन्स — हर लेवल पर मॉनिटर किया गया।
ट्रैंक्विलाइज़र (सुन कर शायद फिल्मी लगे) और डॉक्टरों की टीम ने एक भी जान के साथ कोई रिस्क नहीं लिया। अब सभी गेंडे फिट, हेल्दी हैं और पार्क में लौटकर सुरक्षित घूम रहे हैं���।जमीनी सच्चाई और रीडर के लिए हाईलाइट्सजलदापाड़ा नेशनल पार्क की 330+ गैंडे की आबादी, जो असम के Kaziranga के बाद सबसे बड़ी है�।इस ऑपरेशन में महिलाओं तक ने हिस्सा लिया, बच्चों ने गांव में सुरक्षा कवच बनाया, ताकि कोई जानवर इंसानी आबादी में न भटके।इतनी बड़ी ट्रेजेडी के बाद भारत में पहला ऐसा मिशन जिसमें इतने ज्यादा गैंडों को एक साथ रेस्क्यू किया गया।हाथियों का रेस्क्यू में रोल देखकर दुनिया भर के कन्जर्वेशनिस्ट्स हैरान रह गए — सोशल मीडिया पर खूब तारीफें।दिल्ली, यूपी, बिहार, असम — हर बड़े न्यूज चैनल की टीम मौके पर पहुँची, रिपोर्टिंग की।रीडर, अब आपसे— ये जज्बा हम सबका!दोस्तों, ऐसे जब देश के कोने-कोने से खबर आती है कि इंसानियत, बहादुरी, सिस्टम और दिल मिलकर कुछ असंभव को मुमकिन बना देते हैं, तो दिल गर्व से भर जाता है।
कल ये गैंडे थे, आज कोई और, लेकिन सच्चाई ये है कि जब भी भारत पर संकट आया है — नेता, सरकार, अधिकारी, आम जनता और अपनी प्रकृति के ये साथ, सब एक हो जाते हैं।आइए, गर्व करें अपने देश पर, हाथियों और गैंडों पर, और उन गुमनाम हीरों पर, जिन्होंने इस खबर को यादगार बना दिया।
इस बार बारिश ने पूरे इलाके को घुटनों पर ला दिया था, मगर भारत के जज्बे ने बता दिया कि यहां जानवर हो या इंसान, हर जान की कीमत है!
Dhananjay Singh
Professional Content Writer, Researcher & Visionary Storyteller
"तरक्की को चाहिए नया नज़रिया—और यह नज़रिया शब्दों से शुरू होता है।"
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